सतगुरू बाबा बूटा सिंह जी महाराज

हिन्दुस्तान की पावन पवित्र वसुन्धरा पर समय-समय के अनुसार तत्वदर्शी आत्मवेत्ता 'जो परमात्मा को तत्व से जानता हो' संत महापुरूषों ने अवतार लिया। इसीलिए भारत अनादिकाल से ऋषि-मुनियों एवं पीर-पैगम्बरों की जन्म-भूमि के रूप में जाना जाता है। इतिहास इस बात का गवाह है कि हिन्दुस्तान के धर्म गुरूओं से विश्व की अनेकों महान विभूतिओं ने आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया। यही कारण है कि विश्व के मानचित्र पर भारत सबसे पहला एवं महान आध्यात्मिक गुरू माना जाता है।
जब अज्ञानता अविधा, हठधर्मिता चरम सीमा पर पहुंच जाती है और समाज तरह-तरह की कुरीतियों और असमानता से ग्रस्त हो जाता है तब पारब्रह्म निर्गुण-निराकार एवं सर्वाधार परमचैतन्य सर्वशक्तिमान परमात्मा स्वयं संत महापुरूषों का रूप धारण करके संसार में प्रकट होता है और भूले-भटके एवं पथभ्रष्ट लोगों को सदमार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

महान विभूति सतगुरू बाबा बूटा सिंह जी

ऐसी ही महान विभूति निराकारलीन परमपूजनीय सतगुरू बाबा बूटा सिंह जी महाराज हुए जिनका जन्म सन 1873 में अविभाज्य हिन्दुस्तान के जिला कैमलपुर के गांव हदवाल में परमपूजनीय पिता सरदार बिशन सिंह और परमवंदनीय माता मायावन्ती के घर हुआ। बचपन से ही बाबा बूटा सिंह जी महाराज को आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने की तीव्र जिज्ञासा थी और मन में वैराग्य होने के कारण बाबा जी अपना ज्यादातर समय साधु-संतो की सगंत और प्रभु के भजन सिमरण एवं धार्मिक सदग्रथों के पठन-पाठन मे बिताया करते थे। शुरू में बाबा जी ने कुछ दिन फौज में नौकरी भी की लेकिन बाद में नौकरी छोड़ने के बाद अपना और परिवार का पालन-पोषण करने के लिए बाबा जी हाथों बाजूओं और शरीर के अंगों पर फूल, नाम, देवी-देवताओं के चित्र और अपने किसी प्रिय का नाम गोदने का काम जगह-जगह जाकर किया करते थे और इस अंग-संग निर्गुण-निराकार परमात्मा के ज्ञान-ध्यान का प्रचार-प्रसार भी किया करते थे। बाबा जी को हिन्दी, अंग्रेजी, फारसी, पंजाबी और उर्दू का पूर्ण ज्ञान था।
परमपूजनीय सतगुरू बाबा बूटा सिंह जी महाराज का विवाह 18वर्ष की आयु में सरदार आशा सिंह जग्गी की सपुत्री लाजवंती से हुआ लेकिन सन 1904 में प्लेग की भयानक बीमारी के कारण वह स्वर्ग सिधार गर्इ। बाबा जी की दूसरी शादी मातावंती से हुर्इ, लेकिन मालिक को कुछ और ही मंजूर था दोनों माताओं से कोर्इ भी संतान नहीं हुर्इ।

आत्मबोध

सतगुरू बाबा बूटा सिंह जी महाराज को निज स्वरूप आत्मा का बोध और निर्गुण-निराकार परमात्मा का दर्शन-दीदार परमपूजनीय सतगुरू बाबा काहन सिंह जी महाराज से हुआ। बाबा बूटा सिंह जी महाराज को यह ज्ञान होते ही अपने औेर परमात्मा के बीच का अंतर खत्म हो गया और जीते जी निर्गुण-निराकार परमात्मा को जानकर और पहचानकर धन्य हो गये। आत्मबोध होने के बाद बाबा जी ने अपना सारा जीवन इस अमोलक ज्ञान को जन-जन तक पंहुचाने में लगा दिया। ऐसे महान और परोपकारी व्यक्तित्व के धनी थे बाबा बूटा सिंह जी महाराज।

जीवनयात्रा का अंत

सन 1943 मे 70 साल की आयु के बाद प्रात: स्मरणीय सतगुरू बाबा बूटा सिंह जी महाराज ने एक दिन कोहमरी में सत्संग फरमाने के बाद सभी महापुरूषों को अपने पास बुलाकर यह आदेश दिया कि आप सब मालिकेकुल निर्गुण-निराकार परमात्मा का सिमरण करो अब हमारी सांसारिक यात्रा पूरी हो गर्इ है। सतगुरू बाबा बूटा सिंह जी महाराज ने अपने सर्वप्रिय जानशीन दोनों शिष्यों बाबा महताब सिंह जी महाराज और बाबा अवतार सिंह जी महाराज को अपना प्यार और दुलार भरा अंतिम उपदेश दिया और साथ ही इस अमोलक ज्ञान को जन-जन तक पहुंचाने का आदेश भी दिया। सभी यह सुनकर हैरान और परेशान थे कि बाबा जी यह क्या कह रहे है। सभी महापुरूष मन ही मन में यह सोच रहे थे कि आज कोर्इ विशेष घटना घटेगी लेकिन सतगुरू का हुक्म मानते हुऐ सभी ने उनके आदेश की पालना की। बाबा जी आराम की मुद्रा में लेट गए और सभी को दोनो हाथ जोड़कर अलविदा कहा और तू ही निराकार, तू ही निराकार, तू ही निराकार महामंत्र का सिमरण करते हुऐ निराकारलीन हो गये।

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